बस यूँ ही वक़्त गुज़रता चला ग्या, ज़ख़्म तो गहरा था पैर भरता चला ग्या, कोशीशे बहुत की यारों ने बचाने की, पैर इश्क़ का मर्ज़ था बढ़ता चला ग्या, ना दीन की गर्मी की और ना रात के अंधेरे की परवाह की, जाने कहाँ का मुसाफिर था बढ़ता चला ग्या,
कोशीशे बहुत की उस शाख़स को रोकने की, जाने क्या रेत का ब्ना था, मुट्ठी से फिसलता चला ग्या,
हम ही थे जो रह ग्ये उस ज़माने मे, और ज़माना था की बदलता चला ग्या,प्र वो शख्स भी अजीब था, मुकरता चला ग्या,हाथ जोड़े मिन्नतें की, दुहाई भी दी, जाने कैसा मीजाज था उसका बिगड़ता चला ग्या,,,
Thursday, November 22, 2007
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1 comment:
hamare aapke roke na rukega ye waqt
na ruka tha na kabhi rukega ye waqt
agar rokna hai to rok lo use jo ja raha door waqt se
phir na kahna ki nahin bataya aapko
kyonki hum ne bachaya kabhi aapko waqt se
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